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बाल कविता


एक भिखारी की आत्म कथा 
/ दीनदयाल शर्मा

मम्मी कहे
होता क से कबूतर
पापा कहे
होता क से कमल
कैसे याद करूं दोस्तो
उत्तर जिसका डबल - डबल

मम्मी कहे
ख से खटमल होता
पापा कहे
होता खरगोश
डबल उत्तर से 
प्यारे दोस्तो
मेरे भी तब 
उड़ गए होश

मम्मी कहे
ग से गमला होता
पापा कहे
होता ग से गधा
पापा की मानूं 
तो गधा है
मम्मी की मानंू 
तो गमला

मैं बोला-
ग से गड़बड़ होता
और गलत भी होता ठीक
ग से और बहुत कुछ होता
पर मम्मी पापा को 
लगा न सटीक

ग से गड़बड़
कहां से लाया
ग से गलत भी 
ठीक नहीं 

मुझे लगे समझाने दोनों
हम तो बिल्कुल सही अड़े
मुझे सिखाते थक गए दोनों
रहे देखते खड़े - खड़े

ग से गधा और गमला होता
तो ग से गलत भी 
मानो ठीक

मेरी न मानी 
मुझे न पढ़ाया
दिनभर अब मैं
मांगूं भीख।