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सम्पादकीय


प्राइवेट स्कूलों से लें प्रेरणा

देशभर में जितनी भी प्राइवेट शिक्षण संस्थाएं हैं, उनमें बच्चों का परीक्षा परिणाम सरकारी स्कूलों की बजाय बहुत ही अच्छा रहता है। किसी स्कूल का 100 प्रतिशत रिजल्ट तो कोई स्कूल 100 प्रतिशत के बिल्कुल नजदीक। आखिर ऐसा होने के पीछे क्या कारण हो सकता है? जबकि कई प्राइवेट स्कूलों में सुविधाओं का भी अभाव होता है। वहीं सरकारी स्कूलों में सभी सुविधाएं होने के बावजूद परीक्षा परिणाम बहुत ही कम रहता है। दो चार स्कूलों का यदि अच्छा परीक्षा परिणाम रहता है तो यह केवल ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। अधिकांश सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के मामले में स्थिति बहुत ही दयनीय है। अधिकांश शिक्षक केवल कोर्स पूरा करवा देना ही अपना कत्र्तव्य समझते हैं। सहशैक्षणिक गतिविधियों में भी सरकारी स्कूल के बच्चे पिछड़े दिखाई देते हैं। अब सरकार ने 'शिक्षा का अधिकार' कानून भी बना दिया है। लेकिन कानून बना देने से उन शिक्षकों के व्यवहार में परिवर्तन आ जाएगा क्या, जो विद्यालय में केवल टाइम पास करने आते हैं। कानून तो पॉलिथिन थैलियों पर प्रतिबंध का भी है, लेकिन क्या ये बंद हो पाई हैं? सरकारी स्कूलों को प्राइवेट स्कूलों से प्रेरणा लेनी चाहिए।